जो लोग कह रहे हैं कि उर्दू बहुल शब्दावली तो गज़ल और हिंदी बहुल शब्दावली तो गीतिका मुझे लगता है वे काफी हद तक सही हैं। वृत्त रत्नाकर मंजरी के अध्ययन के बाद मैंने पाया है कि गजल के सारे पैमाने हिन्दी के किसी न किसी छंद में प्राप्त होते हैं। जैसे आप हिंदी में sonnet , ballad, elegy इत्यादि नहीं लिखते वैसे ही गजल लिखने का भी कोई औचित्य नहीं है। हिंदी में एक अच्छी रचना गीतिका गीत या कविता कुछ भी लिखी जाए तो मैं समझता हूँ उसे मैं कुछ भी नाम दूं उससे श्रोता अथवा पाठक को कोई फर्क नहीं पड़ता। कबीर नामकरण के फेर में पड़ते तो इतने अच्छे पद कहाँ देखने को मिलते।
मुझे इंग्लिश का एक साहित्यकार बताओ जोइंग्लिश गजल लिखता हो और हिंदी का एक साहित्यकार बताओ जो हिंदी में ballad लिखता हो। यह भ्रम की स्थिति वस्तुतः हिंदी और उर्दू को अलग अलग भाषाएँ मानने के कारण है जबकि हिंदी और उर्दू एक ही भाषा होते हुए अपनी लिपि और अपने शब्द चयन की निष्ठा के आधार पर अलग अलग पहचानी जाती है।
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