दिन-प्रतिदिन की घटनाओं पर लेखक की बेबाक राय|
श्रेयस्करं ऋणं अधुना अति, किञ्चित् मा भयभीतमना भव। यदि शासनं न क्षमा तत्परं, तदा विदेशे प्रस्थानं कुरु।।
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