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मंगलवार, 6 दिसंबर 2016

व्यक्तिपूजा

जानता तो मैं पहले से था किन्तु नोटबन्दी ने पक्का कर दिया।
हमारा समाज व्यक्तिपूजक समाज है। जिस व्यक्ति पर यह फ़िदा हो जाये उसके किसी भी कृत्य के औचित्य अनौचित्य पर विचार करना नहीं चाहता। नरेन्द्र मोदी जी इन्दिरा गाँधी के बाद बहुत ही मजबूत, आदर्शवादी व प्रशंसनीय व्यक्ति हैं। किन्तु एक राजनेता और एक अर्थशास्त्री की दृष्टि में बड़ा फर्क होता है बस यही एक चूक हो गयी। भूल गये कि जिन सिपहसालारों को साथ लेकर जंग लड़नी है अगर उन्हीं से जंग लड़ी जायेगी तो परिणाम क्या होगा? खैर मुझे लगता है कि मैं विषय भटक गया। मैं कहना ये चाहता था कि नरेन्द्र मोदी ने विमुद्रीकरण लागू किया और समूचा राष्ट्र समाजशास्त्री व अर्थशास्त्री हो गया। सरकार में बैठे लोगों को अपनी इस योजना की असफलता का अहसास आज 28 दिन बीतने के बाद हो रहा होगा लेकिन यह पब्लिक है इससे अगर 1 वर्ष बाद भी योजना की असफलता को लेकर कोई बात की जायेगी तो यह नरेन्द्र मोदी की योजना में कोई झोल नहीं देखेगी और कह देगी देश के भ्रष्टाचारी और बेइमान कुत्तों ने एक अच्छे प्रधानमन्त्री की योजना को सफल नहीं होने दिया। बेचारी जनता तो नहीं ही जानती थी कि ब्लैक मनी का कितना हिस्सा बैंकों में वापस जमा हो पायेगा अगर सरकार के अपने अनुमान फेल हुए तो बड़े शर्म की बात है। सोचो अगर 16 लाख करोड़ में 14 लाख करोड़ बैंकों में जमा हो गये जो कि लगता है कि हो जायेंगे क्योंकि 10 लाख करोड़ जमा हो चुके हैं। तो विमुद्रिकरण की हवा तो निकली समझो। उससे पहले 56 इंची प्रधानमन्त्री के पीछे 66 इंच का सीना फुलाए खड़े लोगों का चेहरा तो देखने लायक रहेगा।

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