उत्तर प्रदेश सरकार से मेरा निवेदन है कि विद्यालयों का सत्र पुनः जुलाई से जून करें| क्योंकि अप्रैल से मार्च के सत्र में बच्चों का कम से 25 दिन का अध्ययन अध्यापन मारा जाता है| अब ३० मार्च को कक्षा ८ पास होने के बाद छात्र प्रवेश के लिए भटकेगा बहुत कम विद्यालय अपने यहाँ छात्रों का प्रवेश लेने की व्यवस्था कर पायेंगे| बोर्ड #परीक्षायें चल रही हैं जो २१ अप्रैल तक चलेंगी| उसके बाद जब उन बच्चों का कक्षा ९ में प्रवेश होगा| अगर उससे पहले प्रवेश हो भी जाये तो भी जिन विद्यालयों में परीक्षाएं हो रहीं हैं वहाँ अध्ययन अध्यापन की सम्भावना शून्य हैं| अब गरीब का बच्चा या तो 3 महीने में सब भूल जायेगा या फिर गिरवीं गांठ करके प्राइवेट ट्यूटर के शोषण का शिकार होगा| मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि पिछली सरकार ने कुछ ऐसी व्यवस्था की थी ताकि गरीब का बच्चा फिसड्डी रह जाये|
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शुक्रवार, 31 मार्च 2017
बुधवार, 29 मार्च 2017
तुषार का दर्द
मेरी कविता का आनन्द मेरी अपनी आवाज में| साथ ही एक बालक की पीड़ा का अनुभव भी आपको अवश्य होगा| कभी कभी कुछ काम बच्चे भी बड़ी संजीदगी से कर देते हैं|
सोमवार, 20 मार्च 2017
परीक्षा और पूजा
परीक्षा और पूजा में एक समता होती है|
एक जगह भक्त कि दूसरे में छात्र कि परीक्षा होती है|
भगवान को भोग लगता है भगवान कुछ खाता नहीं है|
छात्र पास होता है भले ही उसे कुछ आता नहीं है|
सोमवार, 13 मार्च 2017
इन्हीं लोगों ने लै लीना
इन्हीं लोगों ने, इन्हीं लोगों ने।
इन्हीं लोगों ने ले लीना सिंहासन मोरा।
हमरी न मानो अखिलेशवा से पूछो।
अखिलेशवा से पूछो... जिसने.....पंचर कर दीना, तोड़ा साइकिल मोरा।
हमरी न मानो राहुलवा से पूछो।
हमरी न मानो सैंया...राहुलवा से पूछो।
जिसने केसरिया रंग दीना, फटा कुरता मोरा।
हमरी न मानो, हमरी न मानो।
हमरी न मानो... सैंया ...बहिनिया से पूछो।
ई वी एम् गड़बड़ कीना, चित्त है हाथी मोरा।
शुक्रवार, 10 मार्च 2017
गधे
यूं तो आदमी से दूर मैदान की घास चरते रहे।
लेकिन भाषणों में मुद्दों की रिक्तता भरते रहे।
कोई माने न माने कहे न कहे सत्य ये है
इस बार सिर्फ गधे थे जो बहुत ही मशहूर रहे।
मंगलवार, 7 मार्च 2017
धरा
मेरे एक मित्र ने पूछा खुले आसमान के नीचे जन्मे हो|
मैं कहना चाहूँगा:-
ये जो आसमान सिर पर धरा है|
और नीचे जो पैरों के धरा है|
पता नहीं इनका साथ कब छूटे,
मौज से जी नफरत में क्या धरा है?
कृपया इसे कविता न समझें|
यह मेरा गद्य है|
मैं कहना चाहूँगा:-
ये जो आसमान सिर पर धरा है|
और नीचे जो पैरों के धरा है|
पता नहीं इनका साथ कब छूटे,
मौज से जी नफरत में क्या धरा है?
कृपया इसे कविता न समझें|
यह मेरा गद्य है|
शुक्रवार, 3 मार्च 2017
नमकहरामी
हमारे देश का यह दुर्भाग्य है कि लोग यहाँ शासन करने या लूट पाट करने या कभी कभार सेवा का स्वांग करने के इरादे से देश में आये और इसकी मिटटी पानी से आकर्षित होकर यहाँ रच बस गये| लेकिन उन लोगों में तमाम् ऐसे हैं जो अपनी भक्ति का टोकरा अभी भी वहीं उठाये हुए खड़े हैं जहाँ से वे आये हैं| ये अपने को वामपंथी, सेक्युलर और धर्मनिरपेक्ष न जाने क्या कहते रहते हैं और इस देश का नमक पानी खा पीकर नमकहरामी करते हैं|
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