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गुरुवार, 15 दिसंबर 2016

गजल गीतिका

जो लोग कह रहे हैं कि उर्दू बहुल शब्दावली तो गज़ल और हिंदी बहुल शब्दावली तो गीतिका मुझे लगता है वे काफी हद तक सही हैं। वृत्त रत्नाकर मंजरी के अध्ययन के बाद मैंने पाया है कि गजल के सारे पैमाने हिन्दी के किसी न किसी छंद में प्राप्त होते हैं। जैसे आप हिंदी में sonnet , ballad, elegy इत्यादि नहीं लिखते वैसे ही गजल लिखने का भी कोई औचित्य नहीं है। हिंदी में एक अच्छी रचना गीतिका गीत या कविता कुछ भी लिखी जाए तो मैं समझता हूँ उसे मैं कुछ भी नाम दूं उससे श्रोता अथवा पाठक को कोई फर्क नहीं पड़ता। कबीर नामकरण के फेर में पड़ते तो इतने अच्छे पद कहाँ देखने को मिलते।

मुझे इंग्लिश का एक साहित्यकार बताओ जोइंग्लिश गजल लिखता हो और हिंदी का एक साहित्यकार बताओ जो हिंदी में ballad लिखता हो। यह भ्रम की स्थिति वस्तुतः हिंदी और उर्दू को अलग अलग भाषाएँ मानने के कारण है जबकि हिंदी और उर्दू एक ही भाषा होते हुए अपनी लिपि और अपने शब्द चयन की निष्ठा के आधार पर अलग अलग पहचानी जाती है।

मंगलवार, 6 दिसंबर 2016

व्यक्तिपूजा

जानता तो मैं पहले से था किन्तु नोटबन्दी ने पक्का कर दिया।
हमारा समाज व्यक्तिपूजक समाज है। जिस व्यक्ति पर यह फ़िदा हो जाये उसके किसी भी कृत्य के औचित्य अनौचित्य पर विचार करना नहीं चाहता। नरेन्द्र मोदी जी इन्दिरा गाँधी के बाद बहुत ही मजबूत, आदर्शवादी व प्रशंसनीय व्यक्ति हैं। किन्तु एक राजनेता और एक अर्थशास्त्री की दृष्टि में बड़ा फर्क होता है बस यही एक चूक हो गयी। भूल गये कि जिन सिपहसालारों को साथ लेकर जंग लड़नी है अगर उन्हीं से जंग लड़ी जायेगी तो परिणाम क्या होगा? खैर मुझे लगता है कि मैं विषय भटक गया। मैं कहना ये चाहता था कि नरेन्द्र मोदी ने विमुद्रीकरण लागू किया और समूचा राष्ट्र समाजशास्त्री व अर्थशास्त्री हो गया। सरकार में बैठे लोगों को अपनी इस योजना की असफलता का अहसास आज 28 दिन बीतने के बाद हो रहा होगा लेकिन यह पब्लिक है इससे अगर 1 वर्ष बाद भी योजना की असफलता को लेकर कोई बात की जायेगी तो यह नरेन्द्र मोदी की योजना में कोई झोल नहीं देखेगी और कह देगी देश के भ्रष्टाचारी और बेइमान कुत्तों ने एक अच्छे प्रधानमन्त्री की योजना को सफल नहीं होने दिया। बेचारी जनता तो नहीं ही जानती थी कि ब्लैक मनी का कितना हिस्सा बैंकों में वापस जमा हो पायेगा अगर सरकार के अपने अनुमान फेल हुए तो बड़े शर्म की बात है। सोचो अगर 16 लाख करोड़ में 14 लाख करोड़ बैंकों में जमा हो गये जो कि लगता है कि हो जायेंगे क्योंकि 10 लाख करोड़ जमा हो चुके हैं। तो विमुद्रिकरण की हवा तो निकली समझो। उससे पहले 56 इंची प्रधानमन्त्री के पीछे 66 इंच का सीना फुलाए खड़े लोगों का चेहरा तो देखने लायक रहेगा।

शुक्रवार, 2 दिसंबर 2016

कैशलेस

नोट बंदी के बाद से सरकार बड़ा जोर लगा रही है और वातावरण में कैशलेस कैशलेस का शोर गूंज रहा है। ऐसा लगता है जैसे पल दो पल में जादू होगा और सबकुछ कैशलेस। मगर इसकी तैयारी आनन फानन।
देखिये मैं इन्टरनेट बैंकिंग यूजर होने के नाते जानता हूँ किसी को दोष देना ठीक नहीं। ये आनन फानन का काम नहीं है। अभी बहुत सी तैयारियों की आवश्यकता है। पहले प्रत्येक स्थान पर नेटवर्क की अच्छी स्पीड जरूरी है। फिर बैंक कर्मियों के साथ साथ पब्लिक का इस सन्दर्भ में प्रशिक्षण। उसके बाद बैंक द्वारा लिए जाने वाले शुल्कों का नम्बर आता है। डेबिट कार्ड से 30000 रुपया पेमेंट करने के लिए मैं 333 रूपये का कमिशन दे चूका हूँ अगर नकदी का आप्शन होता तो मैं नकद पेमेंट करता उदाहरण के लिए pnb में 115 रुपया सालाना atm कार्ड मेंटिनेंस। 108 रुपया सालाना sms चार्जेज। इसके बाद अंतरण पर अन्य चार्जेज ऐसे में पब्लिक कैशलेस transaction के लिए प्रोत्साहित कैसे होगी यह समझ से परे है।